नागपुर : भगवान श्री गणेश की स्थापना के चार दिन बाद कई महाराष्ट्रीयन घरों में महालक्ष्मी पर्व मनाया जाता है। इसमें खास कर मां गौरी यानी पार्वती और देवी मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। मां महालक्ष्मी का यह पर्व सुख-संपन्नता देने वाला माना गया है। महाराष्ट्रीयन परिवार में ‘महालक्ष्मी आली घरात सोन्याच्या पायानी, भर भराटी घेऊन आली, सर्वसमृद्धि घेऊन आली’ ऐसी पंक्तियों के साथ मां महालक्ष्मी की अगवानी की जाती है। ऐसा माना जाता है कि माता लक्ष्मी की आराधना से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। महालक्ष्मी की प्रतिमा ज्येष्ठा व कनिष्का का विशेष श्रृंगार किया जाता है।
जेठानी-देवरानी की कथा
ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी के जिस रूप की पूजा की जाती है वो जेठानी-देवरानी हैं। अपने दो बच्चों के साथ वो इन दिनों मायके आती हैं। मायके में आने पर उनका भव्य स्वागत किया जाता है। स्थापना, भोग और हल्दी-कुमकुम के साथ माता की विदाई की जाती है। यह पूजा विशेष कर घर की बहुओं द्वारा की जाती है।
कहा जाता है कि लक्ष्मी की इन मूर्तियों में कोई भी बदलाव तभी किया जा सकता है। जब घर में कोई शादी हो या किसी बच्चे का जन्म हुआ हो। माता की प्रतिमाओं के अंदर गेहूं और चावल भरे जाते हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि घर धन-धान्य से भरा-पूरा रहे। इसके साथ ही अधिकांश परिवारों द्वारा गणेशजी का विसर्जन भी किया जाता है।
छप्पन भोग
श्री महालक्ष्मी जी को छप्पन भोग लगाया जाता है। सोलह सब्जियों को एक साथ मिलाकर भोग लगाया जाता है। साथ ही ज्वार के आटे की अम्बिल और पूरण पोली का महाप्रसाद प्रमुख होता है। 56 भोगों में पूरण पोली, सेवइयां, चावल की खीर, पालकभाजी, तिल्ली, खोपरा, खसखस तथा मुंगफली के दाने की चटनी, लडू, करंजी, मोदक, कुल्डई, पापड़, अरबी के पत्ते के भजिए आदि सामग्री का केले के पते पर भोग लगाया जाएगा।