दृष्टिबाधित विकलांगों की सेवा के लिए समर्पित
नागपूर समाचार : नागपुर शहर के सतरंजीपुरा जोन के पिछे बसे हुए लालगंज इलाके में रहनेवाली श्रीमती सुनंदा पुरी ने अंधत्व, विकलांग होने का दर्द क्या होता है यह स्वयं अनुभव किया है और समाज में जो ऐसे अंध, विकलांग बच्चे है उन्हें सामाजिक तथा मानसिक रूप से सहायता करने का प्रण लिया है।
उन्हें एक लडका और दो लडकिया है. उन्हें नौंवी कक्षा में टायफाईड नामक बिमारी हुई थी, जिसमेंउनके आंखोंपर बुरा असर हुआ. परिणामत: उनके आंखो की रोशनी कम हुई और धीरे धीरे उन्हें कम दिखने लगा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. समाज में बहुत से लोग है जो अपनी परिस्थिती का रोना रोते हुए अपनी असफलता की वजह बतलाते है. लेकिन सुनंदा पुरी ने अंध विकलांग होते हुए भी हार नही मानी और कक्षा बारहवी तक पढाई की. जिस समय विकलांगों के लिए ना की बराबर सुविधाए थी।
इनका जन्म सन 1966 में लालगंज भारती वाडी नागपुर में हुआ. इनके पिताजी बचपन में ही गुजर गए थे. इनके परिवार में तीन बहनें तथा चार भाई थे. इस परिवार का संगोपन सुनंदा पुरी की मां कमलाबाई भारती ने किया. इनका विवाह उम्र के तेईस साल में नरेश पुरी के साथ हुआ, जो एक कंपनी में मजदुरी का काम करते थे।
सुनंदा पुरी को दृष्टिबाधित होनेपर जीवन में कौन कौनसी तकलिफों का सामना करना पडता है यह उन्होंने अनुभव किया है. तबसे उन्होने अंध विकलांग लडके ,लडकियों की सेवा करने का प्रण लिया. अपने घर में एक लडका और दो लडकिया होते हुए भी उन्हें संभालकर दृष्टिबाधितों की सेवा के लिए समय निकाला और आज भी वह विकलांगो की सामाजिक व मानसिक रूप से सेवा कर रही है।
वह प्रोग्रेसिव्ह फेडरेशन ऑफ व्हिज्युअली चैलेंन्ड इस संस्था की सदस्या है और राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी है. यह संस्था दृष्टिबाधित बच्चों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करती है. नैशनल असोसिएशन फार दी ब्लाईंड इस संस्था की भी वह सदस्या है. भवानी स्वयं सहायता दिव्यांग महिला बचत गुट की अध्यक्षा है. इस संस्था के माध्यम से वह दृष्टिबाधित बच्चों के लिए कार्य करती है. नागपुर महानगर पालिका की तरफ से “लेडीज कीट” का व्यवसाय भवानी स्वयं सहायता दिव्यांग महिला बचत गुट ने शुरू किया है.उन्हे इस कार्य के लिए नागपुर महानगर पालिका ने पांच लाख रुपये राशी अनुदान दी थी।
आजकल शादी -ब्याह के मामलों में और वो भी दृष्टिबाधित विकलांग व्यक्ती के लिए कार्य करने हेतु सभी मुकरते है लेकिन सुनंदा पुरी ऐसे विवाह योग्य लडके लडकियों की शादी रचाकर उनका घर बसाने का पवित्र कार्य कर रही है.
कोरोना काल में उन्होंने दिव्यांग मरिजो को बिना किसी हिचकिटाहट से मदद की. जब कोरोनाग्रस्त मरीज के पास उनके परिवारवाले जाते नही थे और दूर से देखकर चले जाते थे उस वक्त सुनंदा पुरी ने अपने जान की परवाह न करते हुए बिना किसी संकोच से उनकी सेवा की. ऐसे कुछ मरीज आज तंदुरुस्त होकर खुशहाल जिंदगी जी रहे है।
दृष्टिबाधित लडकियों के लिए “कुकींग क्लासेस” शुरू करने का उनका संकल्प है लेकिन उनके पास स्वयं की पर्याप्त जगह नही होने की वजह से वह इस कार्य को आगे नही बढा पा रही है.उनका मकान बहुत छोटा है तथा झोपडपट्टी इलाके में होने से “कुकींग क्लासेस” नही चला सकती इस बात का उन्हें दु:ख है. अगर अच्छी जगह मिल जाए तो वह “कुकींग क्लासेस” शुरू करने का संकल्प पूरा कर सकेगी, ऐसी उन्होंने इच्छा व्यक्त की है. सुनंदा पुरी को उनके कार्य मे कामयाबी मिलें और दृष्टिबाधितों को सहायता का हाथ मिल जाए तो दृष्टिबाधित क्षेत्र में क्रांति होगी. वह अपने दृष्टिबाधित बच्चों को इस तरह हिंमत देते हुए कहती है।
“मंजिलें इन्सान के हौसले आजमाती है। सपनों के परदे आँखों से हटाती है। तुम हिंमत मत हारना ये दृष्टिबाधितों
क्योंकि ठोकरेंही इन्सान को चलना सिखाती है।