सुदामा चरित्र, हवन के साथ श्रीमद्भागवत कथा को विराम
नागपुर समाचार :- वर्धमान नगर के राधा कृष्ण मंदिर में श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिवस कथा व्यास डॉ. संजय कृष्ण सलिल ने सुदामा चरित्र का मार्मिक वर्णन किया। कथा के मुख्य यजमान नारायण रौनक मनियार परिवार थे।
कथा व्यास ने बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्री कृष्ण -सुदामा जी से समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र (सखा) से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। सुदामा, द्वारिकाधीश के महल का पता पूछते हुए महल की ओर बढ़ने लगे। द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह श्री कृष्ण के मित्र हैं। इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है।अपना नाम सुदामा बता रहा है। जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा- सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया- कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया और सुदामा को अपने महल में ले गए ओर उनका अभिनंदन किया।
कथाव्यास ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। कथा के पश्चात हवन व महाप्रसाद का आयोजन किया गया। अनेक भक्तों ने इसका लाभ लिया।