नागपुर : जितना व्यक्ति कोरोना महामारी से पीड़ित नहीं हैं, उतना आदमी डर से ग्रसित हो रहा हैं, इस बीमारी का नाम लेना बंद करें यह उदबोधन गणिनी आर्यिका सौभाग्यमती माताजी ने विश्व शांति अमृत महोत्सव के अंतर्गत श्री दिगंबर जैन धर्मतीर्थ क्षेत्र द्वारा आयोजित ऑनलाइन समारोह में दिया.
गणिनी आर्यिका सौभाग्यमती माताजी ने संबोधन में कहा भगवान महावीर के सिद्धांत स्वीकार कर लेते हैं. भगवान महावीर ने कहा इसका सबसे बड़ा कारण हमारी नकारात्मकता हैं. इस बीमारी का नाम लेना बंद कर देना चाहिये. मंत्र, आराधना, रिद्धि करते हो तो इस महामारी से बच सकते हैं, रिद्धि का जाप करते हैं, पूजा करते हैं तो निश्चित हैं विश्व का रोग्य खत्म हो सकता हैं. आज भगवान महावीर की अहिंसा नष्ट हो गई हैं. भगवान महावीर का अहिंसा का सिद्धांत जैनियों के लिए ही नहीं, विश्व के लिये दिया था. हम डॉक्टर को सत्य बताते नहीं हैं उसके वजह से पूरा परिवार बीमारी के चपेट में आ जाता हैं. भगवान महावीर के सिद्धांत का पालन करना हैं. यदि हम भगवान के सिद्धांत करते है तो निश्चित हैं इस महामारी से मुक्त हो सकते हैं.
भगवान महावीर होते तो कहते लड़ो, एक-दूसरे से नहीं बल्कि कर्मो से लड़ो. भगवान महावीर कहते अहिंसा का पालन करना हैं, सत्य हैं, पूजन में पीले चावल, पीले फूल को मत देखो, पूजन के नाम पर मत बटों. भगवान महावीर का जीवन सत्यम, शिवम, सुंदरम था, उन्होंने कहा सुंदर ही मत दिखो, सुंदर बोलो, सुंदर सुनो. हम सुंदर दिखना चाहते हैं लेकिन सुंदर बोलना नहीं चाहते, सुंदर सुनना नहीं चाहते. भगवान महावीर ने सब छोड़ दिया था लेकिन उनके नाम पर दुकान, फैक्ट्रियां खोल दी हैं. भगवान महावीर ने अपरिग्रह का संदेश दिया कहा परिग्रह त्यागो, परिग्रह को दूर करो और आज आप परिग्रह जमा कर रहे हैं. भगवान महावीर के सिद्धांतों का अनुसरण करते हैं तो भगवान महावीर का जन्म लेना सार्थक होगा. सब जीवों के प्रति प्रेम, सब जीवों के प्रति हमें सदभावना रखना होगा, सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य पांच सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारे. आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरूदेव का वात्सल्य सभी साधुओं के प्रति भरा हैं.
आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने कहा माताजी सौभाग्यमती हैं, और मति में सौभाग्य हैं, जहां जाती हैं वहाँ सौभाग्य जगाती हैं. माताजी ने अनेक क्षेत्र पर 10 मानस्तंभ खड़े कर दिये हैं. मानस्तंभ मान को स्तंभित करते हैं. अच्छे कार्य करते रहे, बुरे कर्मो से बचे. हिंसा ना करें, असत्य से बचें, चोरी से बचे, शील को छोड़े, सुशील बनें. सुमित खेडकर ने माताजी को अर्घ्य समर्पित किया.