दान दुर्गति का नाश करता हैं – आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी
नागपुर : दान दुर्गति का नाश करता हैं, दान सदगति का कारण बन सकता हैं यह उदबोधन दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति अमृत वर्धमानोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन समारोह में दिया.
गुरूदेव ने कहा जीवन हमारे पास महत्वपूर्ण यह हैं आपने किसकी संगति की हैं. व्यवहार अच्छा हैं तो मन मंदिर हैं. आहार अच्छा हैं तो तन ही मंदिर हैं. विचार अगर अच्छे हैं तो मस्तिष्क मंदिर हैं और तीनों अच्छे हैं तो आत्मा ही मंदिर हैं. कभी अपने किये का घमंड नहीं करें.
छोटे छोटे संयम नियम धारण करना चाहिए – श्री सुयशगुप्तजी मुनिराज : आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरूदेव के आज्ञानुवर्ती शिष्य श्री. सुयशगुप्तजी मुनिराज ने कहा हमारे गुरुदेव अनुकंपा बरसा रहे हैं. आस्था के बिना, गुरु के बिना जीवन का मूल्य नहीं होता. संसारी माता पिता सुलाना सिखाते हैं पर गुरु त्यागना सिखाते हैं. संसारी माता पिता देते हैं पर गुरु जो देते हैं वह संसारी माता पिता नहीं देते. गुरु चलना सिखाते हैं, जागना सिखाते हैं और तो और संसारी माता पिता छाया देते हैं पर गुरु छत्रछाया देते हैं. ऐसी छत्रछाया देते अनुकंपा से छत्रत्रय देते हैं. विश्व शांति वर्धमानोत्सव आज के काल में अत्यंत उपयोगी हैं. कोरोना से पीड़ित, महामारी से भयभीत और जिन्हें कोरोना नहीं हुआ वह अपनी सुरक्षा के लिये अपने घर बैठकर जिनेन्द्र आराधना के माध्यम से अपने दुखों को दूर कर सकते हैं.
भगवान महावीर का सिद्धांत मनुष्य के लिए ही नहीं प्राणीमात्र के लिये भी हैं. भावनाओं को अच्छा बनाना पड़ेगा. सच्चा धर्मात्मा वह हैं सम्यग दर्शन को धारण करनेवाला हैं, वह भगवान महावीर का अनुयायी हो सकता हैं. भगवान महावीर के पथ का हो सकता हैं. वह दया, जीवरक्षा का पालन करता हैं. प्रत्येक प्राणी में आत्मा नजर आना चाहिये. प्राणीमात्र के प्रति अनुकंपा धारण करना चाहिये, बन पड़े तो उनकी सहायता करना. साधुसंत, ब्रह्मचारी, अणुव्रतधारी उनको आहार देना, उनकी सेवा करना.
निरंतर भावना करना उनके रत्नत्रय, भाव, धर्म की वृद्धि होते रहें. छोटे छोटे संयम नियम को धारण करना चाहिये. मन, वचन, काय से कुटिलता को दूर कर सरल बनाना. कोरोना या किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो उसे आर्थिक सहायता करना. शांति को धारण करना, समता को धारण करना. आपको दुख, दर्द पीड़ा हैं तो आपसे ज्यादा जिनको दुख, दर्द पीड़ा हैं उनको देखें. जो व्याप्त हैं वह पर्याप्त हैं. हमारे आयुकर्म का भरोसा नहीं हैं. धर्मसभा का संचालन विनयगुप्तजी मुनिराज ने किया.