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नागपूर समाचार : अणे की पुस्तक ‘विदर्भ नामा’ का लोकार्पण

 

अणे की पुस्तक ‘विदर्भ नामा’ का लोकार्पण

नागपुर समाचार : महाराष्ट्र के पूर्व महाधिवक्ता एड. श्रीहरि अणे की पुस्तक ‘विदर्भ नामा’ का लोकार्पण नागपुर के सिविल लाइंस स्थित प्रेस क्लब में हुआ। यह पुस्तक मराठी, हिंदी और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में उपलब्ध है। इसमें विदर्भ का समग्र इतिहास शामिल है। इस मौके पर अणे ने कहा, ‘विदर्भ पर लिखी मेरी पिछली किताब पश्चिम महाराष्ट्र में ‘बैन’ है। पुणे में यह किताब बिकना मुश्किल है। यह संभव है कि मेरी नई किताब ‘विदर्भ नामा’ भी पश्चिम महाराष्ट्र में बिकने नहीं दी जाएगी ।’

अणे ने कहा, ‘किसी दौर में मराठा साम्राज्य का शासन 60% भारत पर रहा। इसमें शिवाजी महाराज का शासन 20 % क्षेत्र पर था। लेकिन विदर्भ पर पश्विम महाराष्ट्र के किसी भी राजा का शासन कभी नहीं रहा। उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज सिर्फ दो बार विदर्भ आए। इसके अलावा उनका विदर्भ से कभी कोई संबंध नहीं रहा। विदर्भ में गोंड राजाओं का शासन रहा। इसके अलावा प्रथम राजे रघुजी भोसले और उनके वंशजों की सत्ता रही।

अणे ने विदर्भ के पिछड़ेपन से जुड़ी धारणाओं पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘जब विदर्भ के पिछड़ने की बात आती है, तब लोग तरह-तरह के कारण बताते हैं। जैसे- विदर्भ के नेताओं ने ही इस क्षेत्र को डुबो दिया, हिंदी भाषी लोग विदर्भ के सिर पर आकर बैठ गए या नालायक नेताओं के कारण विदर्भ पिछड़ गया। लेकिन ऐसे कारणों को कोई प्रमाणित नहीं कर पाता। इसलिए हमें विदर्भ का इतिहास और इससे जुड़े आंदोलनों को जानने की जरूरत है।’

अणे ने कहा, ‘ निश्चित ही रामायण और महाभारत काल रहे होंगे। लेकिन इनके कहीं आर्किटेक्ट (इमारत) प्रमाण नहीं है। हम इतिहास को ऐतिहासिक इमारतों के जरिए ही प्रमाणित कर सकते हैं।’

वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर कोंडबत्तुनवार ने पुस्तक की समीक्षा की। उन्होंने कहा, ‘ विदर्भ की भाषा को कमतर आंका गया। यह बड़ी राजनीतिक साजिश थी। साल 1836 में मराठी का व्याकरण बना। उसके पहले मराठी का व्याकरण नहीं था। जब यह व्याकरण बनाने की बारी आई, तब पश्चिम महाराष्ट्र की सत्ता ने पुणे की मराठी को चुना। यह सत्ता पुणे की मराठी को श्रेष्ठ बताने लगी। विदर्भ की मराठी को कमतर बताया। फिर विदर्भ की भाषा को कमजोर बताने की प्रथा ही चल पड़ी।’ कोंडबत्तुनवार ने कहा, ‘हमें हमारी भाषा बोलने का हक है। इसमें किसी को हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं।’

कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ पत्रकार और ‘विदर्भ का दर्द’ पुस्तक के लेखक अजय पांडे ने कहा, ‘मेरे पास कुछ विद्यार्थी आए थे। वे विदर्भ पर पीएचडी कर रहे थे। उन्होंने मुझसे विदर्भ संबंधी पुस्तकें, दस्तावेज मांगे थे। ऐसे विद्यार्थियों के लिए ‘विदर्भ नामा’ पुस्तक उपयोगी साबित होगी।’ पांडे ने कहा, ‘अलग विदर्भ राज्य के लिए वर्षों से आंदोलन चल रहा है। यह कहना कठिन है कि विदर्भ राज्य कब बनेगा। लेकिन विदर्भ के लिए आंदोलन करने वाले लोग अब तक थके नहीं है, यह बड़ी बात है।’

विदर्भ राज्य आंदोलन समिति के संयोजक पूर्व विधायक एड. वामनराव चटप ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। चटप ने कहा, ‘सरकार बदली। लेकिन विदर्भ के प्रति नीति कभी नहीं बदली।’ उन्होंने कहा, ‘अगर मराठी भाषा के दो दल बन सकते हैं तो एक भाषा के दो राज्य क्यों नहीं बन सकते? सच तो यह है कि विदर्भ के नेताओं के पास अब कोई जवाब नहीं है।’

विदर्भ मिरर प्रकाशन और प्रेस क्लब नागपुर ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम आयोजित किया था। कार्यक्रम में महाराष्ट्र श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष प्रदीप कुमार मैत्रे, लेखक डॉ. हेमंत साने भी उपस्थित थे। जबकि विदर्भ मिरर प्रकाशन के प्रकाशक-संपादक संदेश सिंगलकर, सलाहकार डॉ. रवींद्र भुसारी और व्यवस्थापक राजेश कुंभारे ने कार्यक्रम के आयोजन में अहम भूमिका निभाई।

बता दें कि छह साल पहले एड. अणे ने पृथक विदर्भ और पृथक मराठवाड़ा राज्य की मांग करते हुए महाधिवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया था। तब शिवसेना ने अणे के खिलाफ प्रदर्शन किया था। साथ ही अणे पर देशद्रोह का मुकदमा दायर करने की मांग की थी।

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